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कुछ जख्म रिसते रहे , कुछ ख्वाब सिसकते रहे ...



कुछ जख्म रिसते रहे ,
कुछ ख्वाब सिसकते रहे ...

 एक पल भी न रुक कर  ,
 बेपरवाह  से दिख  कर, 
 चलते रहे ..चलते रहे ....

दिन निकलते रहे, ढलते रहे, 
अरमान दिल में ही  मचलते रहे ,
हम सब्र रख चलते रहे , चलते रहे .....
 
 
 
 In today's #rapidfire, write a 5 line #favouritepoem. Feel free to pick a line from one of your favourite poems and continue with it.

My favourite entries posted before 10 pm IST will be highlighted tomorrow. #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Baba


कुछ जख्म रिसते रहे ,
कुछ ख्वाब सिसकते रहे ...

 एक पल भी न रुक कर  ,
 बेपरवाह  से दिख  कर, 
 चलते रहे ..चलते रहे ....

दिन निकलते रहे, ढलते रहे, 
अरमान दिल में ही  मचलते रहे ,
हम सब्र रख चलते रहे , चलते रहे .....
 
 
 
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