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हमरी प्रेम कहानी भाग 1 ************** ए भाईजी आपक

हमरी  प्रेम कहानी भाग 1
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ए भाईजी आपको किरिया, हमर लव स्टोरी काहू से बतियाईयेगा नही। एक तो सक्सेस हुआ नही दूसरा दुबारा कबहु इश्क़ फरमाने का साहस नहीं हुआ।  पहिले बार के प्रेम में ही घर से लेके समाज तक सबे मिल के एतना न रगड़-मरद दिया कि,खुटियाईल बकरा की तरह सीधे मंडपे में आँख खोल सर्टिफाइड दुलहनिया को देखे। 12 बरस तक खुलल आँख से सूरदास की तरह बस स्कूल, कॉलेज और इधर उधर लड़की को  देखते त थे,पर क्या मजाल कबहु दिमाग मे कोउ बूरा खयाल आए। कसम से पहिले प्रेम के बाद एकदम से उम्दा सन्यासी वाला जिनगी जीये।
एक समय था जब आपलोगन के तरह हमहू गबरू,टनाटन जुआन (जवान) थे। गोंवे (गांव) में ही पले बढ़े त वही हमर स्वर्ग था और हुवे की लड़की सब अप्सरा। हमरे समय मे लड़की को ताक भर लेना चरित्रहीन और गुनाह माना जाता था। सो एकदम से सादा जीवन आर उच्च विचार लेके जवानी में उतरे। पर ई उमर किसी का सुनता है का। एक दिन हमरो नजर ओझरा गया एगो सुंदरी से (उ त सुंदर माने ऐश्वर्या आर कैटरीना बाद में बूझे)। हुआ यूँ की गोंवे के बगल में कोसिकी नदी का एगो धारा था। सब लइकन झुंड बना के हुंआ नहाने जाते थे। लगभग 60-70 फुट चौरा उ धारा में रेत (बहाव) त था ही पानी एकदम निर्मल और साफ। मछरियो तलहटी में तैरती नजर आ जाती थी। बहुते घर मे वही पानी खाना बनावे और पीने के लिए भी उपयोग होता था। धारा के पूर्वी और पश्चिमी किनारा पे लोग नहाते धोते थे। दुनु पट्टी के लोग में काफी जान पहचान था और न्योता-पाती का संबंध। नहाते नहाते जोर जोर से आवाज देके औरतियन सब बतिया भी लेती थी।
एक दिन नहाने पहुंचे और अपन अंगवस्त्र उतारे ही थे कि एगो कमनीय वाला माथा में ऊसर (एक झाग वाली मिट्टी) लगाते उ पट्टी में नजर आई। एगो दूसर लड़की उसके पीठ पे माटी रगड़ के ठिठोली कर रही थी।सब लइकन मुँह फारे बगुला नियर उका देख रहा था। उ अपन फ्रॉक को ठुड्डी से दावे अपना यौवन छुपाए,आँख मीचे दूसरी लड़की को कुछ बोले भी जा रही थी। हमहू टकटका के एक नजर देखे फिर तुरंते धर्मगुरु बन लइकन सब के धर्म ज्ञान समझाने लगे, कि ऐसे किसी लड़की -इस्त्री को देखना पाप है। सब हमरा मुँह ऐसे देखने लगा जैसे शुम्भ-निशुम्भ दानव को हमही पैदा किये रहे।खैर हम सब नहाने लगे। हमको पानी से डर लगता था ऊपर से हेलना भी नही आता था सो किनारे में डुबकुनियाँ लगाने लगे। कुछ लइकन तैराक था सो तैर के बीच मे पहुंच गया और उ लड़की के नजदीक से निहारने  का लुत्फ उठाने लगा। पता नही मन में क्यों ईर्ष्या हुई और हम मने-मन भगवान से मनाने लगे कि सबे लइका डूब जाए,आन्हर (अंधा) हो जाए,पनिया वाला सांप डस ले सबको,एगो हमही सिर्फ उका निहारते रहे। उ दिन जब नाहा के वापस चले त सब बस उसी का चर्चा किये जा रहा था। हमरा मन उदास था।मने मन श्राप दे रहे थे सबका की सबके मुँह में लकवा मार दे।
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हम दू दिन तक उन सबके साथ नहाने नही गए। बस मने मन उ लड़की का नहाने आर पानी  में छपर-छपर तैरने का वीडियो चलाने लगे। तीसरे दिन लगा कि हमको फिर सबके साथ जाना चाहिए,काहे की ई लम्पटवा सब पता नही का-का बोल रहा होगा और कौन सा सीन क्रिएट किया होगा। सच कहे पता नही उ लईकी के लिए काहे मन में श्रद्धा और सुविचार पलने लगा। ऐसा लग जैसे हमर पहिला प्रेम का बिज पुनक (अंकुरित) गया। 
अब हम उका निहारने नही जाते थे कोसिकी नहाने बल्कि मने मन उका सुरक्षा और अपनी लंगुरी सेना के नजर से उसको बचाने जाते थे हुआँ। जैसे ही लइकन सब वाणी और नजर से भटकता था झट दुगो संस्कार वाला उद्धरण देके उन सबको कंट्रोल करते थे।
उका रोज नहाते त देखने जाते थे पर दिल मे धीरे-धीरे कोसिकी से भी चौड़ा प्रेम का धारा फूटने लगा था। मन करता था दिन भर उ नहाए और हम टुकुर-टुकुर उका देखे। कभी उ हमसे बतिया ले। एक बार प्रेम से इशारा करे। थोड़ा मुस्कुरा के हमरी तरफ देखे। लेकिन प्रेम का ट्रेलर  बस उसी आधा घंटा में खतम हो जाता था फिर उ कपड़ा बदल के टहल जाती थी और सिनेमा समाप्त। फिर हमरे विलेन झुंड में तरह-तरह का चर्चा होता था।मन खिसिया जाता था।
लगभग एक महीना तक इहे सिलसिला चला।इधर हमर प्रेम रोग बढ़ा जा रहा था। खाय-पिये में मन नही लगता था। पढ़ाई के समय बस किताब को दीदा फार के निहारते रहते थे। सुतने जाते थे त अपने आप आंख भर जाता था। स्थिति मिलाजुला के गंभीर हुआ जा रहा था।
एक दिन मन तनिक ज्यादा उद्विग्न लगा त सांझ के बेला से थोड़ा पहिले नदी की ओर टहल दिए। जाके किनारे बैठ मुलुर-मुलुर उ पट्टी को निहारने लगे। फिर अपने आप ऋण लगे। बीच बीच मे नेटा सुड़क के पानी मे फेक देते थे। 10-20 मछरी सब लपकता था उधर। आंसू रुक तो ई खेल देख के मन आनंदित हुआ। हमने फैसला किया अब रोज मछरी को खिलाने हुआँ आऊंगा। अभी जाने के लिये उठ ही रहे थे कि देखे दू गो लड़की देकची लेके घाट के तरफ बढ़ रही थी। हम फिर पसर गए टकटकी लगा। जब छवि स्पष्ट हुआ त दिल पे एकदम से परमाणु हमला जैसा बुझाया। हिचकी के साथ थोक भर नेटा गटक गए और आंख के लेंस को चौड़ा कर-करके उका निहारने लगे। हमर प्रेम प्रार्थना शायद भगवान ने सुन ली थी। ई हमरे वालो सुंदरी थी।
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हम तनी स्टाइल से बैठते हुए हाथ हिलाए।कउनो जबाब नही मिला।दोनों डुबुक डुबुक अपना डेकची भरने लगी। हमने कहा "ए जी सुनो" वो नही सुनी। तब मन में एक विचार आया एगो ढेला उठा के जोर से उसके तरफ फेके। ढेला उसके बगल में छप्प से पानी मे गिरा। दोनों नजर उठा के देखी और एक सुर में बोली "करोगे छिछरई" हमको पहचानते हो। भोगिन्दर जी के बेटी है।बाबूजी से कहेंगे तो उल्टा लटका के सोंटेंगे।
हम गला खखस के बोले।अरे नही रे हमको नही पहचानी।हम वही हूँ जो दिन में तुमको नहाते टुकुर-टुकुर देखता हूँ। फिर त बबाल हो गया। वो जोर जोर से बतियाने लगी। अपन माय-बहिन को काहे नाही देखते हो।आवारा कंही का। एतना लात मारेंगे सटक जाओगे।
मन दुःखी हुआ पर पूछ ही लिए।अरे हम त बस इतना पूछ रहे थे कि का तुम रोज शाम को पानी लेने आती हो।
जबाब मिला नहीं त क्या तोरा बाबूजी चूल्हा-चौक करे पानी भरता है का हमरे हियां।
झिड़क सुनके थोड़ा उदास हुए पर खुश भी थे कि अब रोज शाम को उका देख पाएंगे। आगे बिना कुछ बोले चल दिये हुआँ से।
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दूसरे दिन जैसे ही नहाने के लिए झुंड में निकले। "लुखड़ा" बोला का बे कल खूबे गाली सुन रहा था उ आइटम से नदी किनारे। हम थोड़ा चकित हुए। बोले, कुछ से कुछ मत बोलो। उ लपक के बोला हम सब देखे-सुने हैं, हुएं टट्टी के लिए बंसबिट्टी में बैठे रहे। आगे कुछ बोलना बेकार था। सब हमको ऐसे देखा जैसे हम कब्र से उठ के खड़े हुए हो। फिर एक सुर में बोला,बेटा मामला गड़बड़ लग रहा। जेकर उ बेटी है न जे चीड़ के रख देगा। उ पट्टी उसका बहुते बड़ा इंटा भट्टी है।10 गो त गुंडवन सब संगे रहता है भोगिन्दर जी के। हम खुद को संभाल के बोले "त हम का करें, हमको क्या डर लगता है।ऐसा कौन सा काम कर दिये कि फुफकारी मारे जा रहे हो। ले दे के विवाद थमा। हमलोग नहाने पानी मे उतरे। सब दिन की तरह हम किनारे में फुदकने लगे। इतने में हमर प्राणप्रिय सखा के साथ उ पट्टी आ गई नहाने। हम कनखी से देख के खुश हुए। आज वो लोग नहाने नही उतरी किनारे बैठ हमारे पूरे ग्रुप को भक्क-भक्क ताके जा रही थी। गोबिन तैर के हमरे पास पहुंचा और बोला"आ गई तेरी हेरोइन"। हम सिहर के रह गए। जब तक हमलोग नहाते रहे उ दोनों लड़की नहाने पानी मे नही उतरी।मन डर गया कि कंही कल वाला बात उसको बुरा तो नही लगा। झटपट कपड़ा पहिन जाने का सोचे। एतने में एगो लइका जोर से बोला"आज भौजी उदास लग रही" सबे दांत चिहार ठसठसा के हंस दिया।हम माथा झुकाय बिना कुछ बोले संग हो लिए। मने मन प्रतिज्ञा किये अब इन सबके साथ नहाने नहीं आऊंगा।
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आज फिर शाम हुआ तो मन हिलकोर मारा की नदी किनारे जाएं। पर सबकी बताई बातों से और आज के उसके नदी किनारे ताकने के अंदाज से, मारे डर के घुटने में जान नही लग रहा था। मन के व्यथा पर प्रेम विजय पाया और हम साहस बटोर निकल पड़े नदी किनारे। सबके नजरों से बचते बचाते घाट पे पहुंचे तो दृश्य देख दंग रह गए 20-25 अपने गांव के लोग किसी का क्रिया-कर्म करने वहां पहुंचे हुए थे। अभी पास पहुंचे भी नही थे कि भुवन चाचा बोले अरे तुम देर से आए। अब त आगो (अग्नि) पड़ गया। तोरी घुघरी चाची चल गई रे। गमछा से नाक पोछते हमरा कंधा पे हाथ दिए हमको चिता तक घसीट लाए। अब सर मुंडवाने का एगो अलग झमेला माथे लग गया। अजय देवगन जैसे बाल के चले जाने के दुखद स्वप्न से ऐसे ही आंखे छलक आई। चच्चा गमछे से मेरा आंख पोछते हुए बोले"चुप हो पगले,जाने वाले को कौन रोकता है"। मन मे आया उसको उसी चिता पे धकेल के बोले"चच्चा अभिये प्रेम शुरू किए रहे,अब बिना बाल के सुंडा सर लेके क्या मुँह दिखाएंगे अपने लाडो को"। फिर एक किनारे बैठ सब देखने लगे। इतने में डेकची लेके मेरी सुंदरा घाट पे आ गई और नीर नयन को विराम मिला। चिता की लपट के बीच फिर मुलुर-मुलुर उसको निहारने लगे।
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बाल के वियोग में महीना भर घर से घाट तक नही गए। मन में तरह-तरह की आशंका आते थे। इस वानरी फौज में से गर किसी ने मेरी लाडो को पटा लिया तो फिर? कुछ बोल दिया तो फिर? जेभी प्रेम पक्का नही हुआ है मेरा वो किसी और को चाहने लगी तो फिर?
रहा नही गया एक दिन तीर की तरह घर से घाट के लिए निकल पड़े। अभी गांव से निकल नदी के रास्ते पे चले ही थे कि देखा थोड़ी दूर आगे एक भैंस जैसे आदमी के साथ एक लड़की चली जा रही थी। मैंने अपना कदम ताल बढ़ाया और नजदीक जा पहुंचा। माथे में ठनका ठनक गया। वही फ्रॉक,वही काया,वही चाल, खुले बाल.......अरे...मेरी लाडो ही तो थी.....पर इस पार? साथ में ये भैंस जैसा आदमी? मैं डग भरता हुआ उससे आगे निकल उसे देखना चाहता था। जैसे ही बगल पहुंचा लड़की मुड़ के देखी। जी मे आया शाहरुख खान की तरह बांहे खोल बोल डालूँ...ल...लल....लाडो। फिर बिना किसी भाव के किनारे की तरफ बढ़ गया। बीच मे हल्के टेढ़े गर्दन से पीछे आते लाडो को देखे जा रहा था। वो भी भौं पे बल डाले शायद मेरे चेहरे का अनुमान लगा रही थी।
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हमरी  प्रेम कहानी भाग 1
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ए भाईजी आपको किरिया, हमर लव स्टोरी काहू से बतियाईयेगा नही। एक तो सक्सेस हुआ नही दूसरा दुबारा कबहु इश्क़ फरमाने का साहस नहीं हुआ।  पहिले बार के प्रेम में ही घर से लेके समाज तक सबे मिल के एतना न रगड़-मरद दिया कि,खुटियाईल बकरा की तरह सीधे मंडपे में आँख खोल सर्टिफाइड दुलहनिया को देखे। 12 बरस तक खुलल आँख से सूरदास की तरह बस स्कूल, कॉलेज और इधर उधर लड़की को  देखते त थे,पर क्या मजाल कबहु दिमाग मे कोउ बूरा खयाल आए। कसम से पहिले प्रेम के बाद एकदम से उम्दा सन्यासी वाला जिनगी जीये।
एक समय था जब आपलोगन के तरह हमहू गबरू,टनाटन जुआन (जवान) थे। गोंवे (गांव) में ही पले बढ़े त वही हमर स्वर्ग था और हुवे की लड़की सब अप्सरा। हमरे समय मे लड़की को ताक भर लेना चरित्रहीन और गुनाह माना जाता था। सो एकदम से सादा जीवन आर उच्च विचार लेके जवानी में उतरे। पर ई उमर किसी का सुनता है का। एक दिन हमरो नजर ओझरा गया एगो सुंदरी से (उ त सुंदर माने ऐश्वर्या आर कैटरीना बाद में बूझे)। हुआ यूँ की गोंवे के बगल में कोसिकी नदी का एगो धारा था। सब लइकन झुंड बना के हुंआ नहाने जाते थे। लगभग 60-70 फुट चौरा उ धारा में रेत (बहाव) त था ही पानी एकदम निर्मल और साफ। मछरियो तलहटी में तैरती नजर आ जाती थी। बहुते घर मे वही पानी खाना बनावे और पीने के लिए भी उपयोग होता था। धारा के पूर्वी और पश्चिमी किनारा पे लोग नहाते धोते थे। दुनु पट्टी के लोग में काफी जान पहचान था और न्योता-पाती का संबंध। नहाते नहाते जोर जोर से आवाज देके औरतियन सब बतिया भी लेती थी।
एक दिन नहाने पहुंचे और अपन अंगवस्त्र उतारे ही थे कि एगो कमनीय वाला माथा में ऊसर (एक झाग वाली मिट्टी) लगाते उ पट्टी में नजर आई। एगो दूसर लड़की उसके पीठ पे माटी रगड़ के ठिठोली कर रही थी।सब लइकन मुँह फारे बगुला नियर उका देख रहा था। उ अपन फ्रॉक को ठुड्डी से दावे अपना यौवन छुपाए,आँख मीचे दूसरी लड़की को कुछ बोले भी जा रही थी। हमहू टकटका के एक नजर देखे फिर तुरंते धर्मगुरु बन लइकन सब के धर्म ज्ञान समझाने लगे, कि ऐसे किसी लड़की -इस्त्री को देखना पाप है। सब हमरा मुँह ऐसे देखने लगा जैसे शुम्भ-निशुम्भ दानव को हमही पैदा किये रहे।खैर हम सब नहाने लगे। हमको पानी से डर लगता था ऊपर से हेलना भी नही आता था सो किनारे में डुबकुनियाँ लगाने लगे। कुछ लइकन तैराक था सो तैर के बीच मे पहुंच गया और उ लड़की के नजदीक से निहारने  का लुत्फ उठाने लगा। पता नही मन में क्यों ईर्ष्या हुई और हम मने-मन भगवान से मनाने लगे कि सबे लइका डूब जाए,आन्हर (अंधा) हो जाए,पनिया वाला सांप डस ले सबको,एगो हमही सिर्फ उका निहारते रहे। उ दिन जब नाहा के वापस चले त सब बस उसी का चर्चा किये जा रहा था। हमरा मन उदास था।मने मन श्राप दे रहे थे सबका की सबके मुँह में लकवा मार दे।
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हम दू दिन तक उन सबके साथ नहाने नही गए। बस मने मन उ लड़की का नहाने आर पानी  में छपर-छपर तैरने का वीडियो चलाने लगे। तीसरे दिन लगा कि हमको फिर सबके साथ जाना चाहिए,काहे की ई लम्पटवा सब पता नही का-का बोल रहा होगा और कौन सा सीन क्रिएट किया होगा। सच कहे पता नही उ लईकी के लिए काहे मन में श्रद्धा और सुविचार पलने लगा। ऐसा लग जैसे हमर पहिला प्रेम का बिज पुनक (अंकुरित) गया। 
अब हम उका निहारने नही जाते थे कोसिकी नहाने बल्कि मने मन उका सुरक्षा और अपनी लंगुरी सेना के नजर से उसको बचाने जाते थे हुआँ। जैसे ही लइकन सब वाणी और नजर से भटकता था झट दुगो संस्कार वाला उद्धरण देके उन सबको कंट्रोल करते थे।
उका रोज नहाते त देखने जाते थे पर दिल मे धीरे-धीरे कोसिकी से भी चौड़ा प्रेम का धारा फूटने लगा था। मन करता था दिन भर उ नहाए और हम टुकुर-टुकुर उका देखे। कभी उ हमसे बतिया ले। एक बार प्रेम से इशारा करे। थोड़ा मुस्कुरा के हमरी तरफ देखे। लेकिन प्रेम का ट्रेलर  बस उसी आधा घंटा में खतम हो जाता था फिर उ कपड़ा बदल के टहल जाती थी और सिनेमा समाप्त। फिर हमरे विलेन झुंड में तरह-तरह का चर्चा होता था।मन खिसिया जाता था।
लगभग एक महीना तक इहे सिलसिला चला।इधर हमर प्रेम रोग बढ़ा जा रहा था। खाय-पिये में मन नही लगता था। पढ़ाई के समय बस किताब को दीदा फार के निहारते रहते थे। सुतने जाते थे त अपने आप आंख भर जाता था। स्थिति मिलाजुला के गंभीर हुआ जा रहा था।
एक दिन मन तनिक ज्यादा उद्विग्न लगा त सांझ के बेला से थोड़ा पहिले नदी की ओर टहल दिए। जाके किनारे बैठ मुलुर-मुलुर उ पट्टी को निहारने लगे। फिर अपने आप ऋण लगे। बीच बीच मे नेटा सुड़क के पानी मे फेक देते थे। 10-20 मछरी सब लपकता था उधर। आंसू रुक तो ई खेल देख के मन आनंदित हुआ। हमने फैसला किया अब रोज मछरी को खिलाने हुआँ आऊंगा। अभी जाने के लिये उठ ही रहे थे कि देखे दू गो लड़की देकची लेके घाट के तरफ बढ़ रही थी। हम फिर पसर गए टकटकी लगा। जब छवि स्पष्ट हुआ त दिल पे एकदम से परमाणु हमला जैसा बुझाया। हिचकी के साथ थोक भर नेटा गटक गए और आंख के लेंस को चौड़ा कर-करके उका निहारने लगे। हमर प्रेम प्रार्थना शायद भगवान ने सुन ली थी। ई हमरे वालो सुंदरी थी।
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हम तनी स्टाइल से बैठते हुए हाथ हिलाए।कउनो जबाब नही मिला।दोनों डुबुक डुबुक अपना डेकची भरने लगी। हमने कहा "ए जी सुनो" वो नही सुनी। तब मन में एक विचार आया एगो ढेला उठा के जोर से उसके तरफ फेके। ढेला उसके बगल में छप्प से पानी मे गिरा। दोनों नजर उठा के देखी और एक सुर में बोली "करोगे छिछरई" हमको पहचानते हो। भोगिन्दर जी के बेटी है।बाबूजी से कहेंगे तो उल्टा लटका के सोंटेंगे।
हम गला खखस के बोले।अरे नही रे हमको नही पहचानी।हम वही हूँ जो दिन में तुमको नहाते टुकुर-टुकुर देखता हूँ। फिर त बबाल हो गया। वो जोर जोर से बतियाने लगी। अपन माय-बहिन को काहे नाही देखते हो।आवारा कंही का। एतना लात मारेंगे सटक जाओगे।
मन दुःखी हुआ पर पूछ ही लिए।अरे हम त बस इतना पूछ रहे थे कि का तुम रोज शाम को पानी लेने आती हो।
जबाब मिला नहीं त क्या तोरा बाबूजी चूल्हा-चौक करे पानी भरता है का हमरे हियां।
झिड़क सुनके थोड़ा उदास हुए पर खुश भी थे कि अब रोज शाम को उका देख पाएंगे। आगे बिना कुछ बोले चल दिये हुआँ से।
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दूसरे दिन जैसे ही नहाने के लिए झुंड में निकले। "लुखड़ा" बोला का बे कल खूबे गाली सुन रहा था उ आइटम से नदी किनारे। हम थोड़ा चकित हुए। बोले, कुछ से कुछ मत बोलो। उ लपक के बोला हम सब देखे-सुने हैं, हुएं टट्टी के लिए बंसबिट्टी में बैठे रहे। आगे कुछ बोलना बेकार था। सब हमको ऐसे देखा जैसे हम कब्र से उठ के खड़े हुए हो। फिर एक सुर में बोला,बेटा मामला गड़बड़ लग रहा। जेकर उ बेटी है न जे चीड़ के रख देगा। उ पट्टी उसका बहुते बड़ा इंटा भट्टी है।10 गो त गुंडवन सब संगे रहता है भोगिन्दर जी के। हम खुद को संभाल के बोले "त हम का करें, हमको क्या डर लगता है।ऐसा कौन सा काम कर दिये कि फुफकारी मारे जा रहे हो। ले दे के विवाद थमा। हमलोग नहाने पानी मे उतरे। सब दिन की तरह हम किनारे में फुदकने लगे। इतने में हमर प्राणप्रिय सखा के साथ उ पट्टी आ गई नहाने। हम कनखी से देख के खुश हुए। आज वो लोग नहाने नही उतरी किनारे बैठ हमारे पूरे ग्रुप को भक्क-भक्क ताके जा रही थी। गोबिन तैर के हमरे पास पहुंचा और बोला"आ गई तेरी हेरोइन"। हम सिहर के रह गए। जब तक हमलोग नहाते रहे उ दोनों लड़की नहाने पानी मे नही उतरी।मन डर गया कि कंही कल वाला बात उसको बुरा तो नही लगा। झटपट कपड़ा पहिन जाने का सोचे। एतने में एगो लइका जोर से बोला"आज भौजी उदास लग रही" सबे दांत चिहार ठसठसा के हंस दिया।हम माथा झुकाय बिना कुछ बोले संग हो लिए। मने मन प्रतिज्ञा किये अब इन सबके साथ नहाने नहीं आऊंगा।
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आज फिर शाम हुआ तो मन हिलकोर मारा की नदी किनारे जाएं। पर सबकी बताई बातों से और आज के उसके नदी किनारे ताकने के अंदाज से, मारे डर के घुटने में जान नही लग रहा था। मन के व्यथा पर प्रेम विजय पाया और हम साहस बटोर निकल पड़े नदी किनारे। सबके नजरों से बचते बचाते घाट पे पहुंचे तो दृश्य देख दंग रह गए 20-25 अपने गांव के लोग किसी का क्रिया-कर्म करने वहां पहुंचे हुए थे। अभी पास पहुंचे भी नही थे कि भुवन चाचा बोले अरे तुम देर से आए। अब त आगो (अग्नि) पड़ गया। तोरी घुघरी चाची चल गई रे। गमछा से नाक पोछते हमरा कंधा पे हाथ दिए हमको चिता तक घसीट लाए। अब सर मुंडवाने का एगो अलग झमेला माथे लग गया। अजय देवगन जैसे बाल के चले जाने के दुखद स्वप्न से ऐसे ही आंखे छलक आई। चच्चा गमछे से मेरा आंख पोछते हुए बोले"चुप हो पगले,जाने वाले को कौन रोकता है"। मन मे आया उसको उसी चिता पे धकेल के बोले"चच्चा अभिये प्रेम शुरू किए रहे,अब बिना बाल के सुंडा सर लेके क्या मुँह दिखाएंगे अपने लाडो को"। फिर एक किनारे बैठ सब देखने लगे। इतने में डेकची लेके मेरी सुंदरा घाट पे आ गई और नीर नयन को विराम मिला। चिता की लपट के बीच फिर मुलुर-मुलुर उसको निहारने लगे।
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बाल के वियोग में महीना भर घर से घाट तक नही गए। मन में तरह-तरह की आशंका आते थे। इस वानरी फौज में से गर किसी ने मेरी लाडो को पटा लिया तो फिर? कुछ बोल दिया तो फिर? जेभी प्रेम पक्का नही हुआ है मेरा वो किसी और को चाहने लगी तो फिर?
रहा नही गया एक दिन तीर की तरह घर से घाट के लिए निकल पड़े। अभी गांव से निकल नदी के रास्ते पे चले ही थे कि देखा थोड़ी दूर आगे एक भैंस जैसे आदमी के साथ एक लड़की चली जा रही थी। मैंने अपना कदम ताल बढ़ाया और नजदीक जा पहुंचा। माथे में ठनका ठनक गया। वही फ्रॉक,वही काया,वही चाल, खुले बाल.......अरे...मेरी लाडो ही तो थी.....पर इस पार? साथ में ये भैंस जैसा आदमी? मैं डग भरता हुआ उससे आगे निकल उसे देखना चाहता था। जैसे ही बगल पहुंचा लड़की मुड़ के देखी। जी मे आया शाहरुख खान की तरह बांहे खोल बोल डालूँ...ल...लल....लाडो। फिर बिना किसी भाव के किनारे की तरफ बढ़ गया। बीच मे हल्के टेढ़े गर्दन से पीछे आते लाडो को देखे जा रहा था। वो भी भौं पे बल डाले शायद मेरे चेहरे का अनुमान लगा रही थी।
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