भिखारिन 🎭 देखा था मैंने उसे, सूनी सड़कों पे टहलते हुए। कभी रोती, कभी हसती थी, अपनी दुखों को समेटे हुए। जाड़े की रात हो, या गर्मी की धूप हो। देखा था मैंने उसे, चिथड़ों में लिपटे हुए।। बिखरी जुल्फों से झांकती, उसकी सूनी आंखें। खोजती दानियों से, खाने को कुछ पाने के लिए, देखा था मैंने उसे, भूखे फुटपाथों पे सोए हुए।। सोचा था उसने कभी, सुखी जीवन जीने को। सुख तो मिला नहीं, दुआ मांगती मरने के लिए। देखा था मैंने उसे, सूनी सड़क पे मरते हुए।। ©Indu Bala Mishra #भिखारिन