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कितना सँभालें तुझे ए जिंदगी कभी रिश्तों से, तो कभ

कितना सँभालें तुझे ए जिंदगी 
कभी रिश्तों से, तो कभी 
खुद से रूठ रहे है 
जज्बातों के इस गहरे समंदर में 
ख़्वाहिशों की कश्तियाँ डुबो रहे है 
मत कर उदास इतना कि 
अब तुझे जीने की आस खो रहे है.. !

©Vikram Sharma डिअर ज़िन्दगी 

#LostInNature
कितना सँभालें तुझे ए जिंदगी 
कभी रिश्तों से, तो कभी 
खुद से रूठ रहे है 
जज्बातों के इस गहरे समंदर में 
ख़्वाहिशों की कश्तियाँ डुबो रहे है 
मत कर उदास इतना कि 
अब तुझे जीने की आस खो रहे है.. !

©Vikram Sharma डिअर ज़िन्दगी 

#LostInNature