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पेज-37 एक ओर मानक की सगाई की धूम दूसरी ओर बिजली के

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एक ओर मानक की सगाई की धूम दूसरी ओर बिजली के दिल दिमाग में शादी का भूत हुआ सवार... ताऊ जी सब कुछ सहन कर सकते थे मगर बिजली जो कह दे उसे पूरा करने में जान लगा देते थे.. ताऊ जी.. करीब छह फुट लम्बा भीमकाय शरीर किन्तु वृद्धावस्था ने उदर को लम्बोदर कर रख्खा था.. घुटनों तक सोलह हाथ की धोती लपेटे.. हाथ में सरसों तेल में नहाया शारीरिक कद के मुताबिक लट्ठ.. नाक से जबड़े तक गिरती फिर उठकर कानों को छूकर गालों पर दोनों ओर वृत्त निर्मित करती घणी मूछें.. जिन्हें देखते ही अच्छे अच्छों की घिग्घी बंध जाती है.. किसी की ना सुननेवाले ताऊ जी की नकेल केवल हमारे विशाल साहब ने कस रख्खी थी वरना तो मानक की सगाई बाद में पहले बिजली को बादल से मिलाना ही पड़ता.. यहाँ कथाकार ने बिजली को आते
 देख सबको सतर्क करने करना चाहा.. मगर

आगे कैप्शन में..

©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी.. 
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शेष भाग. 
कथाकार को कौन सुन पा रहा है सबको तो गेस्टहॉउस जाकर दुल्हनियां के दीदार जो करने थे... कहीं कहीं अन्दर ही अन्दर एक स्पर्धा का भाव भी जन्म ले चुका था जब दुल्हनिया के साथ फोटो सेशन हो तो कौन किससे सुंदर दिखे खैर ये तो मन के अन्दर की बातें हैं जो ना तो किसी के मुख तक आनी है ना कोई समझ पानी है.. कथाकार को बिजली के श्रृंगार को देखकर यूँ लगा अगर कोई एक बार सिद्द्त से कोशिश करे तो बिजली का मूल सौंदर्य ऐसा होगा जिसे देखकर दुनिया के किसी भी कोने में बादल क्यूँ ना छुपा ह
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एक ओर मानक की सगाई की धूम दूसरी ओर बिजली के दिल दिमाग में शादी का भूत हुआ सवार... ताऊ जी सब कुछ सहन कर सकते थे मगर बिजली जो कह दे उसे पूरा करने में जान लगा देते थे.. ताऊ जी.. करीब छह फुट लम्बा भीमकाय शरीर किन्तु वृद्धावस्था ने उदर को लम्बोदर कर रख्खा था.. घुटनों तक सोलह हाथ की धोती लपेटे.. हाथ में सरसों तेल में नहाया शारीरिक कद के मुताबिक लट्ठ.. नाक से जबड़े तक गिरती फिर उठकर कानों को छूकर गालों पर दोनों ओर वृत्त निर्मित करती घणी मूछें.. जिन्हें देखते ही अच्छे अच्छों की घिग्घी बंध जाती है.. किसी की ना सुननेवाले ताऊ जी की नकेल केवल हमारे विशाल साहब ने कस रख्खी थी वरना तो मानक की सगाई बाद में पहले बिजली को बादल से मिलाना ही पड़ता.. यहाँ कथाकार ने बिजली को आते
 देख सबको सतर्क करने करना चाहा.. मगर

आगे कैप्शन में..

©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी.. 
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शेष भाग. 
कथाकार को कौन सुन पा रहा है सबको तो गेस्टहॉउस जाकर दुल्हनियां के दीदार जो करने थे... कहीं कहीं अन्दर ही अन्दर एक स्पर्धा का भाव भी जन्म ले चुका था जब दुल्हनिया के साथ फोटो सेशन हो तो कौन किससे सुंदर दिखे खैर ये तो मन के अन्दर की बातें हैं जो ना तो किसी के मुख तक आनी है ना कोई समझ पानी है.. कथाकार को बिजली के श्रृंगार को देखकर यूँ लगा अगर कोई एक बार सिद्द्त से कोशिश करे तो बिजली का मूल सौंदर्य ऐसा होगा जिसे देखकर दुनिया के किसी भी कोने में बादल क्यूँ ना छुपा ह