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नि:शब्द निशा के कुप अंधेरे में जब बेसुध सोया जमा

नि:शब्द निशा के 
कुप अंधेरे में
जब बेसुध सोया 
जमाना होता है
जब छिप जाता है 
समेटकर रोशनी
आवारा जूगनू भी

उठ जाती हूँ
एकाएक
किसी छुअन से
एक हाथ जो
बेइजाजत
सरसराता हुआ
मेरी जाँघों को जाता है
मेरी चीखें
दूसरे हाथ से 
दबकर 
दम तोड़ देती हैं

रिसता है पानी सा
आँखों की कोर से
मैं बन जाती हूँ
बुत सी शिला
फिर महसुस नहीं होती
कोई सिहरन 
जिस्म में
जब वो रेंगता है
पूरे बदन पर
होता नहीं दर्द 
खरोंचों का

बस फीका पड़ जाता है
लाल रंग
सिंदूर का
छिन्न हो जाती है
ताकत
मंगलसुत्र की
हार जाते हैं
हम तीनों
अपने ही 
सुहाग से
फिर लोग कहते हैं
तो चिढ होती है
"शादी मुबारक हो" marital#rape
नि:शब्द निशा के 
कुप अंधेरे में
जब बेसुध सोया 
जमाना होता है
जब छिप जाता है 
समेटकर रोशनी
आवारा जूगनू भी

उठ जाती हूँ
एकाएक
किसी छुअन से
एक हाथ जो
बेइजाजत
सरसराता हुआ
मेरी जाँघों को जाता है
मेरी चीखें
दूसरे हाथ से 
दबकर 
दम तोड़ देती हैं

रिसता है पानी सा
आँखों की कोर से
मैं बन जाती हूँ
बुत सी शिला
फिर महसुस नहीं होती
कोई सिहरन 
जिस्म में
जब वो रेंगता है
पूरे बदन पर
होता नहीं दर्द 
खरोंचों का

बस फीका पड़ जाता है
लाल रंग
सिंदूर का
छिन्न हो जाती है
ताकत
मंगलसुत्र की
हार जाते हैं
हम तीनों
अपने ही 
सुहाग से
फिर लोग कहते हैं
तो चिढ होती है
"शादी मुबारक हो" marital#rape