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हिस्से का ज़िक्र नहीं करते, किस्से का बवाल मचाते ह

हिस्से का ज़िक्र नहीं करते, किस्से का बवाल मचाते हैं,
ये क़द्र करने वाले भी न अक्सर क्या धमाल मचाते हैं।

भूल जाते हैं कि कहाँ शुरू किया, कहाँ ख़त्म किया था,
ये उँगली उठाने वाले भी न अक्सर क्या सवाल उठाते हैं।

दूसरों पर कसते तंज, ख़ुद का किया-धरा दिखता नहीं,
ये मज़ाक उड़ाने वाले भी न अक्सर क्या चाल दिखाते हैं।

उम्मीद से रंगकर ख़ुद ही उसे कालिख से ढंक दिया करते,
ये आस बढ़ाने वाले भी न अक्सर क्या कमाल दिखाते हैं। हिस्से का ज़िक्र नहीं करते, किस्से का बवाल मचाते हैं,
ये क़द्र करने वाले भी न अक्सर क्या धमाल मचाते हैं।

भूल जाते हैं कि कहाँ शुरू किया, कहाँ ख़त्म किया था,
ये उँगली उठाने वाले भी न अक्सर क्या सवाल उठाते हैं।

दूसरों पर कसते तंज, ख़ुद का किया-धरा दिखता नहीं,
ये मज़ाक उड़ाने वाले भी न अक्सर क्या चाल दिखाते हैं।
हिस्से का ज़िक्र नहीं करते, किस्से का बवाल मचाते हैं,
ये क़द्र करने वाले भी न अक्सर क्या धमाल मचाते हैं।

भूल जाते हैं कि कहाँ शुरू किया, कहाँ ख़त्म किया था,
ये उँगली उठाने वाले भी न अक्सर क्या सवाल उठाते हैं।

दूसरों पर कसते तंज, ख़ुद का किया-धरा दिखता नहीं,
ये मज़ाक उड़ाने वाले भी न अक्सर क्या चाल दिखाते हैं।

उम्मीद से रंगकर ख़ुद ही उसे कालिख से ढंक दिया करते,
ये आस बढ़ाने वाले भी न अक्सर क्या कमाल दिखाते हैं। हिस्से का ज़िक्र नहीं करते, किस्से का बवाल मचाते हैं,
ये क़द्र करने वाले भी न अक्सर क्या धमाल मचाते हैं।

भूल जाते हैं कि कहाँ शुरू किया, कहाँ ख़त्म किया था,
ये उँगली उठाने वाले भी न अक्सर क्या सवाल उठाते हैं।

दूसरों पर कसते तंज, ख़ुद का किया-धरा दिखता नहीं,
ये मज़ाक उड़ाने वाले भी न अक्सर क्या चाल दिखाते हैं।