हिस्से का ज़िक्र नहीं करते, किस्से का बवाल मचाते हैं, ये क़द्र करने वाले भी न अक्सर क्या धमाल मचाते हैं। भूल जाते हैं कि कहाँ शुरू किया, कहाँ ख़त्म किया था, ये उँगली उठाने वाले भी न अक्सर क्या सवाल उठाते हैं। दूसरों पर कसते तंज, ख़ुद का किया-धरा दिखता नहीं, ये मज़ाक उड़ाने वाले भी न अक्सर क्या चाल दिखाते हैं। उम्मीद से रंगकर ख़ुद ही उसे कालिख से ढंक दिया करते, ये आस बढ़ाने वाले भी न अक्सर क्या कमाल दिखाते हैं। हिस्से का ज़िक्र नहीं करते, किस्से का बवाल मचाते हैं, ये क़द्र करने वाले भी न अक्सर क्या धमाल मचाते हैं। भूल जाते हैं कि कहाँ शुरू किया, कहाँ ख़त्म किया था, ये उँगली उठाने वाले भी न अक्सर क्या सवाल उठाते हैं। दूसरों पर कसते तंज, ख़ुद का किया-धरा दिखता नहीं, ये मज़ाक उड़ाने वाले भी न अक्सर क्या चाल दिखाते हैं।