पानी रंगहीन , पर करता रंगदारी भाप तो हल्का, बर्फ तो भारी धरती से गगन, गगन से धरती पर बाल शरारत रहती जारी प्यास बुझाए यह अवतारी जीवन का यह एक आधारी नाराज तो सूखा, प्रलय भीषण जो प्रसन्न हो हो हरियाली जो घट मैं तो छल छल करता नदियों में कल-कल बहता समुद्र मैं हो तो ज्वार है भारी सुनो तो इसकी क्या यह कहता गर्जन शांत पड़ी है इसकी सांसे भी हो रही है भारी प्यास अभी भी बुझा है सकता पर लालच की बात ही न्यारी हार गया है यह आधारी ©️प्रशान्त शर्मा #पानी #prashantsharma #prashantkolesaria #nadaanparinda21feb #nadaanparinda