मरहम भी है, दवा भी है, दुआ सी है , बेरहम भी है, खफा भी है, बद्दुआ सी है। है मन्नत भी, नफरत भी, रुख बदलती हवा सी है, मेरी तकदीर में आशिकी, बस जुआ सी है।। टिकती है, सम्भलती है, फिर बहक जाती है। रुकती है, साथ चलती है, फिर मचल जाती है, अपने नफ़ा में, वफ़ा को कौन याद रखता है यहां, शायद भुलाना अंदाज़ कुदरती है, तो ये भी, बदल जाती है।। मेरे दिल से दिल्लगी, धुआं धुआं सी है, फिर भी बदन में, ज़हन में, रुआ रुआ सी है। है आदत भी, ग़फलत भी, बेहया सी है, मेरी तकदीर में आशिकी, बस जुआ सी है।। नज़रों की टकटकी, आज एक झलक की मौहताज़ हो गई, पलकें जो क्या झपकी, सारी कसमें चालबाज़ हो गई। जानते हैं लकीरें इश्क की, हथेली पर हल्की मिलीं हैं हमें, फिर बेवजह क्यूं आती है हिचकी, जब वो दग़ाबाज़ हो गई।। चोट पुरानी है, पर आहें, जवां जवां सी है, सूखी नज़रें हैं, बिन पानी का कुआं कुआं सी है। है इशरत भी, जिल्लत भी, हमनवा सी है, मेरी तकदीर में आशिकी, बस जुआ सी है।। ©Rahul Kaushik #shaayavita #aaahiqui #jua #simplicity