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न जाने वो कितने सितम ढा गई, न कुछ कही, न कोई वज़ह

न जाने वो कितने सितम ढा गई,
न कुछ कही, न कोई वज़ह बता गई।

 इतनी बेरुखी से तग़ाफ़ुल करती रही,
के मेरी जिंदगी को सज़ा बना गई।

खुद बेवफाई करती रही इस तरह,
और मुझे ही बेवफा बना गई।

दर्द भी कितने देती रही मुझे  ,
पर न उसकी दवा बता गई।

माना के जिंदगी में कोई वज़ह न थी,
पर तू इसे एक पल में बेवज़ह बता गई।

©Aarzoo smriti
  # न जाने कितने......

# न जाने कितने...... #Shayari

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