वो शिरीष, नव रगों में साहस भर रहा जो खुद थकने का नाम नहीं ले रहा, वो शिरीष, ज्येष्ठ की आग-सी धरा में खङा जो चिलचिलाती धूप में भी छाया दे रहा, आकाश से अपना सार निचोङता हुआ पुष्पों से मन में उमंग अर्जित करता हुआ जो विकटता में भी अजेयता का प्रचार कर रहा, वो शिरीष, हर मनुज के हौंसले को चेता रहा हर विपदा में भी उसे निडरता सिखा रहा, वो शिरीष, सरस है, कोमल है और फ़क्कङ भी जो हर मुश्किलों को चुनौती दे रहा, वो शिरीष, नव रगों में साहस भर रहा जो खुद थकने का नाम नहीं ले रहा। शिरीष # हजारी प्रसाद द्विवेदी # शिरीष के फूल # Sidhar AJay