मेरे लिए तुम क्या हो शायद मैं वो नहीं तुम्हारे लिए तब टुकड़ा कांच का था मैं जिसमे तुम सवरती थी आधी अधूरी कान के झुमके , माथे की बिंदी कंगन , काजल बड़ी मुश्किल होती थी तुमको मुस्कुराना तेरा मुझमें खो जाना ख़ुद को देखकर कोई ख़ास शिकायत नहीं सिवाय इसके कि तुम पूरे कब होंगे मुझे एक बार में सजना है टुकड़ो में बिखरी सी लगती हूँ अस्को में खुद को चुभती हूँ कई दफ़ा समझाया था मैंने हक़ीक़त देख पानी में कहा से किस्तों में हॅसी कटी है नजरो से ज्यादा छुवन जरूरी है एहसासों को सवारना नहीं पड़ता वो जैसे है वैसे है उनको निखारना नहीं पड़ता बहुत समझाया मगर मुट्ठी बंद कर चुकी थी वो पलों को बचाकर , एहसासों को दबाकर खुशियों के गुल्लक को तोड़कर वो नया आइना ले आयी पूरा खिला चेहरा पकड़ता है ये आईना बस मांग भरने में मुखड़ा तकता है टुकड़े में ©Yash Verma #टुकड़ा #कांच_के_टुकड़े #आईना #jnvian #hindipoetry #uttrakhandi #adhoori_kitaab #smily