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गार्डन की वो सीट आज धूल को समेटे हुए है जो कभी मुह

गार्डन की वो सीट आज धूल को समेटे हुए है
जो कभी मुहब्बत की कहानियों में हुआ करती थी
आज उसकी भी कहानी बन गई
ये पहली दफा है जिसमें अकेलापन महसूस हुआ हो गार्डन की कुर्सी
गार्डन की वो सीट आज धूल को समेटे हुए है
जो कभी मुहब्बत की कहानियों में हुआ करती थी
आज उसकी भी कहानी बन गई
ये पहली दफा है जिसमें अकेलापन महसूस हुआ हो गार्डन की कुर्सी