कभी सोचा है तुमने तुम चाह कर उसको अपने प्रेमी होने का सबूत तो देते हो पर वो नही दे सकती अपने प्रेमिका होने का गंगा को कभी देखा है गंगोत्री से निकलते हुये स्वच्छ निर्मल पावन सबकी गंदगी समेट खुद मैली होने का आवरण ओढ़ समंदर मे समाहित होते हुये एक गंगा को जब तुम निर्मल बहने नही देते तो कैसे उसको प्रेमिका बना लोगे जो चाहती तो है तुम्हारे प्रेम मे डूब जाना पर उस प्रेम मे जिसमें कलुषित सोच वासना की गंदगी शामिल न हो दे सकोगे उसको जो वह चाहती है बहने दोगे अविरल उसकी धारा को सुनो जरा अथाह प्रेम भरी है उसके अंर्तमन में एक खूबसूरत अहसास है उसके छुवन में वो भिगो देगी पर तुम ये समझ लेना प्रेम में वासना को कभी मत पिरोना देह तो नश्वर है धीरे धीरे ही सही उसके रूह में उतरना। प्रेमिका