तरसती है निगाहें अब तेरे दीदार को हमदम// नजर ऐसी लगी सबकी हमारे प्यार को हमदम//१ बगावत पे उतर आया है इसको कौन रोके अब// तू ही समझा सहुलत से दिल-ए-बिमार को हमदम//२ मोहब्बत ही किया हमने कहीं डाका नहीं डाला// लिए है हाथ में दुनियां ये क्यों तलवार को हमदम//३ मुझे जंजीर से बाधां है मैं तो आ नहीं सकता // गुजारिश है दिवाने की मिलो एक बार को हमदम//४ मोहब्बत तौली जाती है रईसी के तराजू में // न जाने क्या हुआ अच्छे भले संसार को हमदम//५ 🌸सुप्रभात, 🌸🌸🌸🌸 🌸आज का हमारा विषय है ''तरसती हैं निगाहेँ" बहुत खूबसूरत विषय है। 🌸आज सुबह की चाय की चुस्की लेते हुए लिखना आरंभ कीजिए। 🌸आपके भाग लेने का समय आज रात्रि 12 बजे तक है,उसके बाद लिखी गई रचनाएं स्वीकार नहीं की जाएगी।