दसवीं कक्षा में जब "मुक्तिदूत" पढ़ाया गया था तब बस उस आदमी का नाम मोहनदास करमचंद गांधी है वो हमारे देश के राष्ट्रीयपिता है और प्यार से उनको बापू बोला जाता है मैं बस इतना ही जानता था। देखा जाये तो असल में बापू दूत ही तो थे दूत जिसे उर्दू में रसूल और अंग्रेजी में मैसेंजर कहा जाता है उन्होंने ही तो इस ग़ुलाम भारत को मुक्ति(अंग्रेजो से) का मार्ग दिखाया था और अपितु दिखाया ही नहीं उस पथ पर अपने जीवन के अंत तक चलते भी रहे थे। उनकी विचारधारा आज भले ही हमे बहुत धीमी और धूमिल प्रतीत होती है पर हमारे देश का अश्तित्व उसी सत्य और अहिंसा की विचारधारा पर टिका है ये विचारधारा उस बीज की तरह है जो बहुत वक़्त लेता है पेड़ बनने में पर जब वो वृक्ष बन जाता है तो सालोसाल अपना लाभ देता रहता है।अपने कुछ भटके मित्रो और सहकर्मियों के मुँह से अक्सर बापू के बारे में अपशब्द सुनने को मिल जाते है मैं भी उनको कोई जवाब नहीं देता क्योंकि बापू की विचारधारा हमे हर बात मुस्कुरा कर सहना सिखाती है और सही वक़्त पे जवाब देना भी सिखाती है। जो भटके हुए है सत्य और अहिंसा के मार्ग से, जिन्होंने दूर दूर तक ग़ुलामी की मार को कभी नहीं सहा वो कैसे बापू और उनकी विचारधारा को समझ सकते है। चाहे रावण को कितना भी विद्वान् बोला जाये या उसके मंदिर भी बना दिए जाए पर पूजे हमेशा प्रभु श्री रामचन्द्र ही जायेंगे, चाहे हम भैरो बाबा के मंदिर में कितने भी शीश झुका ले पर हमारे दिलों में और हमारे घरों में सदा माँ वैष्णो ही विराजमान रहेंगी, चाहे कितने भी फिरौन हमारी राजगद्दी पे बैठ जाए पर हम सब हमेशा पैगम्बर मूसा को ही अपना इष्ट मानेंगे,,, चाहे कितने भी गोदसेवादी आ जाये इस धरती पे पर बापू की विचारधारा ही सदा सर्वोपरि रहेगी। इंसान भले ही दुनिया से चला जाए पर उसकी विचारधारा सदा जनजन के दिलो में जिन्दा रहती है आज भी इस देश को बापू के नाम से जाना जाता है आज भी जब किसी बड़े देश का मंत्री भारत आता है तो सबसे पहले बापू की समाधी पर ही जाता है । सत्य और अहिंसा की विचारधारा इस मुल्क की आत्मा है आप भले ही शरीर को लाख मैला कर दो पर उसकी आत्मा को आप अशुद्ध नहीं कर सकते। हम सबका एक ही नारा। सत्य अहिंसा हो धर्म हमारा।। बापू की उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन एक सरफिरे लेखक की कलम से.........समर।