उसने पूछा। कहानी ये किताबों के वक्त की है, और पहली बेपनाह मोहब्बत की है बात, रहते थे हम श़हर के एक कोने में, और दूजे कोने में जुड़ गये थे जज़्बात। सुबह शाम स्कूल से उसके साथ आना जाना, सफर भी था, मंज़िल भी, उसके घर के पास रहने वाले अंकुर से, जमा ली थी हमने महफ़िल भी। पर दिल में कुछ दिनों से था, बस एक ही शोर, बता दो आज उसे, के नहीं हमारा घर, उसकी गली के पीछे, वो तो चार लम्हे और साथ रहने की नीयत है, अंकुर भी बना जिगरी, क्यूंकि आमने-सामने हैं उनके दरीचे। पाँच किमी दूर, छुट्टी के दिन भी साइकिल से गोपाल की दुकान पे आना, ऐसा था इत्तफ़ाकन मिलने का ख़ुमार, और जान के, टीचर के सामने .शैतानी करना, रहता था बस, उसके साथ बैठने की सज़ा का इंतज़ार। सोचते हैं बतादें उसे लुत्फ़ इम्तिहानों का, जब गणित में कमज़ोर होने का नाटक किए, हमने साथ पढ़ाई की थी था नागवारा हमें, हंसके उसका किसी और से मिलना, जलता था दिल, जब फिर हमने बेवज़ह लड़ाई की थी। वक्त हुआ था ज़ालिम, उससे जुदा होने का, जाना था उसे, अब कहीं किसी और शहर, अरसा गुज़रा करवटो में, बेचैन रातों का, और हमारी दुनिया से बेइल्म़, उसकी खुशबू का कहर। आज शाम आख़िरी मुलाकात है, और धड़कनों का इज़हार करें या दोस्ती बरकरार, हमें ना कुछ सूझा, ना कुछ बोल पाए तब "क्या सोच रहे हो, रह लोगे मेरे बगैर", जब दो आंसू लिए आँखो में, हंसते हुए उसने पूछा। - आशीष कंचन #उसनेपूछा #collab #yqdidi #yourquotesandmine #shayari #poetry #secondquote #yqshayari