एक कवि थे।उन्होंने कई वर्षों से मेहनत करके एक महाकाव्य की रचना की। अब महाकाव्य पूरा होने ही वाला था।उन्होंने एक बिल्ली पाल रखी थी।वह उस बिल्ली से बहुत प्यार करते थे। वह बिल्ली अक्सर उनकी गोद में आकर बैठ जाती थी।एक रात की बात है कवि अपने महाकाव्य को पूरा कर रहे थे।अचानक लाइट चली गई। अतः वे एक मोमबत्ती जलाकर उस महाकाव्य का अंतिम पृष्ठ को लिख रहे थे।तभी अचानक उनकी वह बिल्ली उनकी गोद में आकर बैठ गई। उन्होंने उस बिल्ली को प्यार किया ।और उसे उस टेबल पर बैठा दिया जिस पर वह लिख रहे थे ।और लिखने में मग्न हो गए।अचानक उन्हें किसी जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा।अत्यधिक व्यस्तता होने के कारण वह उस मोमबत्ती को बुझाना भूल गए। जब वह लौटकर आए तो उन्होंने देखा कि बिल्ली ने मोमबत्ती गिरा दिया है ।और उनके बरसों के परिश्रम से निर्मित महाकाव्य के पन्ने धू-धू कर जल रहे हैं।उन्होंने शांत होकर अपनी बिल्ली से कहा कि शायद तुम्हें पता नहीं है कि तुमने क्या किया। और चुपचाप जाकर अपने कक्ष में सो गए। यह बात जब उनके मित्रों को पता चला तो उन्होंने उनसे कहा कि तुम कैसे सो सकते हो?तुम्हारे सालों की मेहनत से निर्मित महाकाव्य तैयार हो चुका था।और इस बिल्ली ने एक मिनट में जलाकर राख कर डाला। तब जाकर उस कवि ने कहा हां महाकाव्य तो जल गया,परंतु अभी मैं नहीं जला हूं,मेरा दिमाग नहीं जला है,मैं फिर से उस महाकाव्य की रचना करूंगा। क्रोध, आवेश,चिंता क्षोव के कारण क्या मैं अपनी शांति में भी आग लगा दू? महाकाव्य तो जल गया।पर शांति तो बची हुई है ।अगर शांति में चिंता की आग न लगने दू तो मैं फिर से महाकाव्य की रचना कर सकता हूं। ©S Talks with Shubham Kumar बुद्धिमता #InspireThroughWriting