तीन मास पहले पापा हमसब को छोड़कर चले गए, इस जीवन के सारे बंधन हमसे तोड़कर चले गए। चले गए यूं हाथ छुड़ा कर घर आंगन सूना करके- रूठ गए क्यों जाने हमसे मुंह मोड़कर चले गए। अंश आपका मैं हूं पापा लेकिन नहीं आप सा मैं, आप वृक्ष की शीतल छाया और सूर्य के ताप सा मैं। नहीं आप सी सहनशीलता नहीं दया का मैं सागर - सुख, शांति प्रतिबिंब आप और दुःख, ताप, संताप सा मैं। नतमस्तक हो श्रद्धा सुमन मैंआपको अर्पित करता हूं, श्रद्धांजलि स्वरुप भाव के दीप प्रज्जवलित करता हूं। कर्म, वचन से, मन से पापा सदा निभाउं धर्म अपना- पुत्र धर्म के पालन का मैं वचन समर्पित करता हूं। "पिनाकी" धनबाद (झारखण्ड) #स्वरचित #श्रद्धांजलि_पिता