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जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं, अब अपने बारे में जा

जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

ग़ैरों से रिश्ता निभाना बहुत आसान है, 
अपने ग़ैर बन जाये तो ढूंढना भी मुश्किल है, 
अपनों से टूटा, ग़ैरों से जुटा, तब जाकर, 
रिश्तों की गहराई में डूबा तो हूँ मैं। 
जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

नशे में होना भी कभी-कभी अच्छा होता है, 
अभी-अभी नशा करके आया हूँ मैं इश्क का,
अभी- अभी जाना है अनजाने कैसे जान हो जाते हैं,
अभी-अभी नशे में प्रेम के डूबा तो हूँ मैं। 
जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

मैं ख़ुद में ही एक जहान हूँ अलग, 
मैं ख़ुद में ही एक मकान हूँ अलग, 
मैं खुद में ही एक इंसान हूँ अलग,
नफ़रतों में उलझा था औरों-औरों से,
इश्क किया हूँ अब जाकर ख़ुद से ही मैं, 
तब रंग अलग-अलग जान पाया तो हूँ मैं। 
जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

टूटना, बिखरना, जुड़ना, समेटना सब जरूरी है, 
ज़िंदगी हर बार गिरकर उठना भी जरूरी है, 
राहों में हर कदम लड़खड़ा कर संभलना भी जरूरी है, 
आँखों में आँसू भरे तब भी मुस्कुराना जरूरी है, 
बहुत ठोकरे खाया है, बहुत दर्द सहा है, तब - 
ग़मों मे दर्द छुपाकर हँसना जान पाया तो हूँ मैं। 
जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

ग़ैरों से रिश्ता निभाना बहुत आसान है, 
अपने ग़ैर बन जाये तो ढूंढना भी मुश्किल है, 
अपनों से टूटा, ग़ैरों से जुटा, तब जाकर, 
रिश्तों की गहराई में डूबा तो हूँ मैं। 
जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

©vivek_kumar_shukla
जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

ग़ैरों से रिश्ता निभाना बहुत आसान है, 
अपने ग़ैर बन जाये तो ढूंढना भी मुश्किल है, 
अपनों से टूटा, ग़ैरों से जुटा, तब जाकर, 
रिश्तों की गहराई में डूबा तो हूँ मैं। 
जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

नशे में होना भी कभी-कभी अच्छा होता है, 
अभी-अभी नशा करके आया हूँ मैं इश्क का,
अभी- अभी जाना है अनजाने कैसे जान हो जाते हैं,
अभी-अभी नशे में प्रेम के डूबा तो हूँ मैं। 
जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

मैं ख़ुद में ही एक जहान हूँ अलग, 
मैं ख़ुद में ही एक मकान हूँ अलग, 
मैं खुद में ही एक इंसान हूँ अलग,
नफ़रतों में उलझा था औरों-औरों से,
इश्क किया हूँ अब जाकर ख़ुद से ही मैं, 
तब रंग अलग-अलग जान पाया तो हूँ मैं। 
जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

टूटना, बिखरना, जुड़ना, समेटना सब जरूरी है, 
ज़िंदगी हर बार गिरकर उठना भी जरूरी है, 
राहों में हर कदम लड़खड़ा कर संभलना भी जरूरी है, 
आँखों में आँसू भरे तब भी मुस्कुराना जरूरी है, 
बहुत ठोकरे खाया है, बहुत दर्द सहा है, तब - 
ग़मों मे दर्द छुपाकर हँसना जान पाया तो हूँ मैं। 
जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

ग़ैरों से रिश्ता निभाना बहुत आसान है, 
अपने ग़ैर बन जाये तो ढूंढना भी मुश्किल है, 
अपनों से टूटा, ग़ैरों से जुटा, तब जाकर, 
रिश्तों की गहराई में डूबा तो हूँ मैं। 
जरा देर से ही समझा तो हूँ मैं,
अब अपने बारे में जाना तो हूँ मैं।

©vivek_kumar_shukla