क्या लिखुँ माँ की शान में, माँ शब्द में ही सारी सृष्टि समाई.... मैं रचना खुद उसकी, उस पर क्या रचु कोई कविता, ये सोच कर मैं घबराई.... हे जननी.. हे माँ मेरी ...तेरे अथाह ममता को, कलम कोई न शब्द आकार दे पाई.... एक माँ शब्द में ही सारी सृष्टि समाई.... ©✍🏻Poonam Bagadia "Punit" कृप्या पूरी पढ़े...👇🏻🙏🏻 "लिए हृदय कवि सा इस जग में,मैं आई बाँध शब्दों में क्षण सभी मन ही मन मैं मुस्काई... तोड़ नभ के तारे सभी, शब्दो की चाशनी में चाँद की चाँदनी डूबाई... कभी प्रीतम की अठखेलियां कभी प्रेम में लिखी तन्हाई.... प्रेम, पीड़ा, सौंदर्य- दर्शन कभी स्वप्न तो कभी धरती - गगन..