प्यार मुहब्बत करने वाले, पत्थर के हक़दार नहीं। तिलक हो या टोपी हो, यहाँ कौन गुनहगार नहीं।। सब मसला है सियासत का, लहू का दाग़ कहाँ ढूंढे। ख़ाकी हो या खादी हो, यहाँ कौन दाग़दार नहीं।। मुल्कों के बीच लकीरों का, सिर्फ नेहरू तो ज़िम्मेदार नहीं। ज़रा अपनी गिरेबाँ में देखो, क्या तुम जिन्ना के सरदार नहीं।। तहज़ीब ये गाँधी का हमने, रग-रग में बसाये रखा है, छीन न सकें अपने हक़ को, हम इतने भी लाचार नहीं।। बोले थे हम बोलेंगे, सब राज़ तुम्हारा खोलेंगे, गर मिटना है तो मिट के रहेंगे, हम दो धारी तलवार नहीं।। "शशि" #मुल्क़ के मौजूदा हालात पर...