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77 विजय उद्घोषणा तेरी यद्यपि न थी स्पष्ट, तो भी व

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विजय उद्घोषणा तेरी यद्यपि न थी स्पष्ट, 
तो भी विजयी हुआ मैं तुझे कर साक्षात दृष्ट, 
बिना प्रसाधन के भी लाल,हिले जो तेरे  ओष्ठ, 
मेरे तिरस्कार कारण हीं तुम्हें झेलनी पड़ी,कष्ट,
जाने स्मृति पर घिर आया था कैसा अंधेरा, 
पहचान न पाया अपने हीं,शुभागमन का फेरा , 
सूर सम फेंका पहनायी सुंदर-सी पुष्पमाला, 
अंधकार वश समझकर उसे विषधर विषैला, 
खुद को दोषी मान, शकुंतला के पग सर डाला, 
कहकर कि पीड़ा को भूल क्षमा करो हे मृदुला । #Shakuntla_Dushyant
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विजय उद्घोषणा तेरी यद्यपि न थी स्पष्ट, 
तो भी विजयी हुआ मैं तुझे कर साक्षात दृष्ट, 
बिना प्रसाधन के भी लाल,हिले जो तेरे  ओष्ठ, 
मेरे तिरस्कार कारण हीं तुम्हें झेलनी पड़ी,कष्ट,
जाने स्मृति पर घिर आया था कैसा अंधेरा, 
पहचान न पाया अपने हीं,शुभागमन का फेरा , 
सूर सम फेंका पहनायी सुंदर-सी पुष्पमाला, 
अंधकार वश समझकर उसे विषधर विषैला, 
खुद को दोषी मान, शकुंतला के पग सर डाला, 
कहकर कि पीड़ा को भूल क्षमा करो हे मृदुला । #Shakuntla_Dushyant