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प्यारी गौरैया तुम कहां चली गई कितना अच्छा लगता था

 प्यारी गौरैया तुम कहां चली गई
कितना अच्छा लगता था..
जब तुम रोज़ मेरे आंगन में आया करती थी
चीं चीं करती कितना शोर मचाया करती थी..
देखो ना आज भी.. 
तुम्हारे लिए दाना पानी दोनों रखा है..
कबूतर के लिए बड़ा पानी का बर्तन
पर तुम्हारे लिए ख़ास छोटा रखा है..
गिलहरी और बुलबुल आती है पर.. 
तुम्हारी कमी कोई पूरी नहीं कर पाता..
कोई नाराज़गी हो तो बताओ ना
प्यारी गौरैया फिर से मेरे आंगन में आओ ना..

©मिली
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