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आज फ़िर वो मंदिर का प्रसाद चुरा के घर पर

आज  फ़िर  वो  मंदिर  का  प्रसाद  चुरा  के  घर  पर  ले  आया, 
किसी  ने  पत्थर, किसी  ने चप्पल  से  उसका  तन  सहलाया।। 

चोर नहीं हूँ, गरीब  हूँ, और  थोड़ा  मज़बूर  भी  हूँ  हालातों  से, 
दवा का पर्चा जिसपे माँ का नाम था, उसने सबको दिखलाया।। 

माँ  बीमार  है,  बहन  भूखी  है, थोड़ा  ले  जाने  दो, रहम  करो, 
और  आश्चर्य  कि  पुजारी  ने  भी  किसी  को  नहीं  समझाया।। 

'कुमार'  क्या  फ़ायदा  ऐसे  धर्म के रखवालों का जब रहम नहीं, 
क्या मारने से पहले उसको, उनका ज़मीर ज़रा भी ना घबराया।। 



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आज  फ़िर  वो  मंदिर  का  प्रसाद  चुरा  के  घर  पर  ले  आया, 
किसी  ने  पत्थर, किसी  ने चप्पल  से  उसका  तन  सहलाया।। 

चोर नहीं हूँ, गरीब  हूँ, और  थोड़ा  मज़बूर  भी  हूँ  हालातों  से, 
दवा का पर्चा जिसपे माँ का नाम था, उसने सबको दिखलाया।। 

माँ  बीमार  है,  बहन  भूखी  है, थोड़ा  ले  जाने  दो, रहम  करो, 
और  आश्चर्य  कि  पुजारी  ने  भी  किसी  को  नहीं  समझाया।। 

'कुमार'  क्या  फ़ायदा  ऐसे  धर्म के रखवालों का जब रहम नहीं, 
क्या मारने से पहले उसको, उनका ज़मीर ज़रा भी ना घबराया।। 



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