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#Mumbai4 कुछ सर फूटे कुछ जानें गयी, कुछ कत्ल |

#NojotoMumbai4
कुछ सर फूटे कुछ जानें गयी,
कुछ कत्ल हुए कुछ दंगे भी,
कुछ गोली चली कुछ पत्थर भी,
कुछ खून बहा कुछ कुछ पसीना,
कुछ उजड़ी मांग कुछ टूटी चूड़ियां,
कुछ जवान फिर बहलाये गए,
कुछ बेकसूर सूली चढ़ाये गए,
कुछ फटे सफेद कुर्ते,
कुछ नंगा सड़कों पर नाच हुआ,
कुछ हिली सियासत,
कुछ की सत्ता गयी।

कुछ की गई सत्ता,
कुछ ने हथिया भी ली,
था दंगल राजनीति का,
हुकूमत पा ली गयी,
जिनके फटे थे कपड़े वो फटे रहे 
नेता जी की बत्ती लाल हुई,
जिनके जले थे घर वो राख हुए,
नेता जी के ठठाम ठाठ हुए,
वो फिर भूखे माँ बाप रहे,
यहाँ सिकते गरम कबाब रहे,
वो लाल खून की होली थी,
नेता जी ने शमीप्यन खोली थी,
अनगिनत घर बर्बाद हुई,
यहाँ फले फूले आबाद हुए,
वहाँ देख लाश माँ रोइ थी,
नेता जी धर्मपत्नी मखमल पे सोई थी,
जो फूटे थे सर दुरस्त हुए,
नेता जी पीकर मस्त हुए,
अब सब होते होते बहाल हुए,
नेताजी को पांच साल हुए
कुछ शांति फिर से आने लगी,
जनता कदमों पे आने लगी,
लो फिर फरमान निकला है,
घोषित फिर चुनावी मेला है।

कुछ सर फूटेंगे कुछ जाएंगी जानें,
कुछ कत्ल होंगे कुछ दंगे भी,
फिर हिलेगी कुर्सी सत्ता जाएगी,
फ़िर बूढ़ी मां भूखी सो जाएगी,
कुछ जलेंगे घर बर्बाद होंगे,
पर नेताजी सिर्फ आबाद होंगें।

#NojotoMumbai4





 #NojotoQuote दंगल राजनीती के
#NojotoMumbai4 #Entry #Submission
#NojotoMumbai4
कुछ सर फूटे कुछ जानें गयी,
कुछ कत्ल हुए कुछ दंगे भी,
कुछ गोली चली कुछ पत्थर भी,
कुछ खून बहा कुछ कुछ पसीना,
कुछ उजड़ी मांग कुछ टूटी चूड़ियां,
कुछ जवान फिर बहलाये गए,
कुछ बेकसूर सूली चढ़ाये गए,
कुछ फटे सफेद कुर्ते,
कुछ नंगा सड़कों पर नाच हुआ,
कुछ हिली सियासत,
कुछ की सत्ता गयी।

कुछ की गई सत्ता,
कुछ ने हथिया भी ली,
था दंगल राजनीति का,
हुकूमत पा ली गयी,
जिनके फटे थे कपड़े वो फटे रहे 
नेता जी की बत्ती लाल हुई,
जिनके जले थे घर वो राख हुए,
नेता जी के ठठाम ठाठ हुए,
वो फिर भूखे माँ बाप रहे,
यहाँ सिकते गरम कबाब रहे,
वो लाल खून की होली थी,
नेता जी ने शमीप्यन खोली थी,
अनगिनत घर बर्बाद हुई,
यहाँ फले फूले आबाद हुए,
वहाँ देख लाश माँ रोइ थी,
नेता जी धर्मपत्नी मखमल पे सोई थी,
जो फूटे थे सर दुरस्त हुए,
नेता जी पीकर मस्त हुए,
अब सब होते होते बहाल हुए,
नेताजी को पांच साल हुए
कुछ शांति फिर से आने लगी,
जनता कदमों पे आने लगी,
लो फिर फरमान निकला है,
घोषित फिर चुनावी मेला है।

कुछ सर फूटेंगे कुछ जाएंगी जानें,
कुछ कत्ल होंगे कुछ दंगे भी,
फिर हिलेगी कुर्सी सत्ता जाएगी,
फ़िर बूढ़ी मां भूखी सो जाएगी,
कुछ जलेंगे घर बर्बाद होंगे,
पर नेताजी सिर्फ आबाद होंगें।

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