वो समय देखता था, कभी ख्वाब देखता था, अपनी ही परछाइयों के कई राज देखता था, हर दिन, हर वक़्त खुद को लाचार देखता था, रोज़ सुबह उठकर कई व्यपार देखता था, न मालिक , न साहूकार फिर भी सबके काम देखता था, ज्वर में पीड़ित हो कर भी राह देखता था, वो नादान बस अपने घर के हालात देखता था, वो नही जानता क्या छल क्या माया, बस खुद की लाचारियों को कई बार देखता था, वो नही जानता एक समय का खाना, वो दिन भर बोझ उठाना, वो तो बस अपने बच्चों की खुशी देखता था, नही मालूम उसे दिन दुनिया, वो बस अपना समाज देखता था, धन के लिए बिके साहूकार देखता था, समाज से क्या फर्क उसे वह बस अपना व्यवहार देखता था, एक आम आदमी था वो जो बस अपना परिवार देखता था, न पढ़ा लिखा न ज्ञानी फिर भी वो धन नही इंसान देखता था, इतनी कठनाइयों पर भी खुशी से जीता था, मतों से उसे क्या मतलब , धर्म वो क्या जाने, वो बस मेहनत का काम देखता था, न होकर भी दुश्मन जाने किसने उसे मारा, जो हर वक़्त सबके हाल देखता था........... #hardwork #poor #relegion #election #life #simplicity #love #prople