मेरी निगाहों में तेरे ख़्याल-ओ-ख़्वाब रखूँ, तुझे सुनाने को शिकायती किताब रखूँ। तुझे समेट लूँ , बादल में चाँद हो जैसे, या मेरे हाथों में जलता सा आफ़ताब रखूँ। मेरी तन्हाई का हर शख़्स पूछता है सवाल, मैं चुभते नश्तरों में, अब कहाँ ग़ुलाब रखूँ। बदल रहा है ज़माना, हज़ार रंग अपने, बदलते मौसमों का भी, कैसे मैं हिसाब रखूँ, वो तंज़ कम नहीं कसते, हैं “प्रीत” जो अपने, किसे निकालूँ मैं, दिल में, किसे जनाब रखूँ, ©प्रतिष्ठा"प्रीत" #yourquote #yourquotedidi #pratibimb #yourquotebaba #mythoughts