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आज कल दिन कितने खाली से लगते है मुहब्बत होकर भी वी

आज कल दिन कितने खाली से लगते है
मुहब्बत होकर भी वीराने से लगते है"
पैगाम हसरतें - ऐ - दिले नादान के
पहुँच जाने के बाद भी अनसुने से लगते है।

कोई बताए मुझे कि कहां ठहर जाऊं मैं
जहां कब्रिस्तान भी खुदा के आशियाने से लगते हो
दुःख, दर्द, तड़प, बेचैनी जो कभी दीवाने थे
आज ना जाने क्यों घुटन से लगते है।

"आज कल दिन कितने खाली से लगते है
मुहब्बत होकर भी वीराने से लगते है"

तुझे चाहे मेरा दिल हर एक सांस पर
तुझे चाहे मेरा दिल हर एक सांस पर,
तो क्यों कभी कभी ये साँसें बोझ सी लगती है
तेरी उल्फत में फना होने का हौसला अफजाई करती हूं
फिर ना जाने क्यों कई रोज ये मुहब्बत ही बेईमान सी लगती है।

"आज कल दिन कितने खाली से लगते है
मुहब्बत होके भी वीराने से लगते है"

तू! हा तू वो था, जो मेरी रूह में समा गया
हा तू ही था! "वो", जो मेरी रूह में समा गया
तो क्यों ये वक्त तुझे जुदा करने की बातें करने से लगते है
भूली नहीं मै कि रूह नहीं तन मरता है
फिर ये क्यों मुझे भुलाने की जिद्द करने लगते है।

"आज कल दिन बहुत खाली से लगते है
तुझे पास पाकर ही ‘रूमायिनत’ से लगते है"
तू मत जाया कर दूर मुझसे
वरना सब कुछ ख़राब होने से लगते है।

©Manpreet Gurjar
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