मेरी नफ़रत भी है शे'रों में ___मिरे प्यार के साथ मैं ने लिक्खी है ग़ज़ल जुरअत-ए-इज़हार के साथ शहर में जहल की अर्ज़ानी है लेकिन अब तक मैं ही समझौता नहीं करता हूँ मेआ'र के साथ इक़्तिदार एक तरफ़ ____एक तरफ़ दरवेशी दोनों चीज़ें नहीं रह सकती हैं फ़नकार के साथ इक ख़ला दिल में बहुत दिन से मकीं है अब तो याद गुज़रा हुआ मौसम भी नहीं यार के साथ बादबानों से उलझती है____ हवा रोज़ मगर कश्तियाँ सोई हैं किस शान से पतवार के साथ मेरे अशआ'र हैं नाक़िद के लिए कुछ भी नहीं दर्द को मैं नहीं लिखता कभी दुश्वार के साथ ##अस'अद बदायूनी #MomentOfTime