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तन्हाई में रोते हैं कि यूँ दिल को सुकूँ हो ये चोट

तन्हाई में रोते हैं कि यूँ दिल को सुकूँ हो
ये चोट किसी साहब-ए-महफ़िल से लगी थी

ऐ दिल तिरे आशोब ने फिर हश्र जगाया
बेदर्द अभी आँख भी मुश्किल से लगी थी

~ अहमद फ़राज़

©स्वर्गीय आनन्द राज आनन्द
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