वा लकुटी अरु कामरिया पे, राज तिहुँ पुर को तजि डारौं ! आठहुँ सिद्धि नोउ निधि कौ सुख, नंद की गाय चराय विसारों !! रसखानि जबही इन नैननि ते,बृज के बन बाग़ तड़ाग निहारूँ ! कोटिक के कलधौत के धाम,करील की कुँजन ऊपर वारूँ !! : क्रमशः---😊02 ☕🐇#बृजधाम☕🍵#साहित्य😍😍#शिक्षा💕🍫💓🐦#अध्यात्म🐦☕#हिंदी🐇🐰🍫🍵#ज्ञान☕🐇🐰🍀🍂🐿😀#संस्कार😙💕😍🍫🍵☕ :गीता स्पष्ट कह रही है कि जो जन्म लेता है, वह मरता है। आपके सम्बन्धों का भी प्रकृति में कोई अर्थ नहीं है। अर्जुन को कृष्ण कह रहे हैं कि तू चाहे इनको मार या नहीं मार, मैं इनको पहले ही मरा हुआ देख रहा हूं। अत: मृत्यु का शोक करना उचित नहीं है। तू क्षत्रिय है। युद्ध करना तेरा धर्म है। गीता ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का एक इकाई रूप में वर्णन किया है जो अन्यत्र नहीं मिलता। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक पुरुष है, शेष प्रकृति है।