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ओस की बूँद जो समेटी थी मैंने.. हथेली के बीच रखक

ओस की बूँद  जो समेटी थी  मैंने.. 
हथेली के बीच रखकर,
लकीरों में  उलझाकर ,
मुट्ठी में सहेज कर ,
उसकी ठंडक सोखकर  ,
हथेली उसके नाम कर !!!
वो सह ना पायी ....
हथेली बीच रहने की घुटन,
तकदीर की लकीरों का बंधन ,
मुट्ठी में कैद उड़ता मन ,
ठंडक रहित पिघला जीवन ,
किसी और की हथेली का धन  !!!

आज मुट्ठी खोली और ओस की बूँद थी ही नहीं 
अब वो "पानी" हो चुकी थी !!!!

©Nalini Tiwari #Winter 
#Freedom 
#Love

#Winter #Freedom Love

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