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मज़हबी नफ़रत की काली आंधी इस क़दर मेरे ख़ून की प्

 मज़हबी नफ़रत की काली आंधी
इस क़दर मेरे ख़ून की प्यासी हुई
जिन से जुड़े थे तार
उन्हीं के हाथों फाँसी हुई

नदामत हुई तो आए माफ़ी को
क़ातिल दोस्त क़ब्र पे मेरी
बोले! कुछ तो हम ख़ुद अंधे हुए
कुछ हम पर चाल सियासी हुई

©Mohammad Atif
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