घर की चौखट होती है, हर एक नारी की शान और मान। बंधन कहो या संस्कार, हर घर की इज्जत और पहचान।। ना पहनों बेड़ियां कभी, ना लांघों घर की दहलीज कभी। औरत होती घर की मर्यादा, ना तोड़ो तुम ये जंजीर कभी।। परदा कहो या घूंघट इसे, ये नारी का स्वाभिमान होता है। चौखट के अंदर भी जीवन पलता, नहीं ये बंधक होता है।। *कृपया रचना लिखने से पहले कैप्शन को जरूर पढ़ ले* *आज का विषय - घर कई चौखट* *इस विषय पर आपको 6 पंक्तियों में अपनी कविता लिखनी है* *प्रतियोगिता नबंर - 2*