ज़िन्दगी को छोड़ कर एक दिन चला जाऊँगा मैं। ज़िन्दगी की इस कलम से सत्य लिख जाऊंगा मैं। रोक ना पाओगे मुझको तुम बहुत पछताओगे। अपनी इस एक मौत पे तेरा नाम लिख जाऊंगा मैं। क्या मिला है,क्या गया है सोंचना ये व्यर्थ है। जो कमाई इज्जतें वो साथ ले जाऊंगा मैं। रात काटी हैं कई बस अंशुओ के हिज्र में। बाकी आँशु अब तेरी आँखों को दे जाऊंगा मैं। चल कोई एक शाम फिर मिल कर सजाएं काव्य की। बस उन्ही की याद में सब कुछ लुटा जाऊंगा मैं। क्या लिखा है क्या पढ़ा है,सब धरा रह जाएगा। बस यही नग़मे तेरे होंठो को दे जाऊंगा मैं। अब चलो नीरा यहीं हम इस ग़ज़ल को छोड़ दे। जाते जाते अपनी लेखनी का कत्ल कर जाऊंगा मैं। ©prajjval_nira_mishra #जाऊँगा_मैं #ग़ज़ल #कलम #लेखक