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सजाने को सजा दूं अल्फाज नए, संवारने को संवार दूं र

सजाने को सजा दूं अल्फाज नए,
संवारने को संवार दूं राग नए।
डर "रसिक" हमको भी लगता है,
अब तो बिकता है दिल बाजार में,
ठोकरें दिखें तो सम्भल जाऊं,
मय को मय में मैं भी न पाऊं,
उल्फतो के शहर में रहता हूं,
जहां हस्ते हैं सब गम... ए बाजार में,
रोज ही देखता हूं मैं हर तरफ,
बिकते हुवे बाजार में प्यार नए। प्यार नए......!
सजाने को सजा दूं अल्फाज नए,
संवारने को संवार दूं राग नए।
डर "रसिक" हमको भी लगता है,
अब तो बिकता है दिल बाजार में,
ठोकरें दिखें तो सम्भल जाऊं,
मय को मय में मैं भी न पाऊं,
उल्फतो के शहर में रहता हूं,
जहां हस्ते हैं सब गम... ए बाजार में,
रोज ही देखता हूं मैं हर तरफ,
बिकते हुवे बाजार में प्यार नए। प्यार नए......!