मेरे ख़यालों का गुलिस्तां विरान है कब से, कहाँ हो तुम धूप धूप है ये ज़िन्दगी मेरी नही छुपा बादलों में आसमां कब से, कहा हो तुम लौट आओ किसी रोज़ की कोई सहर हो ऐसा नही मिला मुझको तुझसा आसना कब से, कहा हो तुम लौट आओ किसी रोज #शायरी #shayari