#OpenPoetry तकल्लुफ तो उन्हें थी हमसे मुलाक़ात करने में और हम उसे तकदीर का लिखा समझ बैठे, खुद की लकीरों को कोसते-कोसते ज़िन्दगी बिता रहे थे कि कभी तो भेंट होगा जरूर मगर सच्चाई तो ये थी कि उन्होंने कभी मुझसे मिलने की ख्वाहिश ही नहीं की, खुदा भी उनके सारे ख्वाब पूरा करता था मैंने सोचा मैं भी उम्र भर उनके साथ रह जाऊंगी पर उन्होंने तो खुदा से किसी और की दुआ कर रखी थी फिर भी सोचा चलो खुश रह लेंगे उनकी खुशी में ही पर शायद उन्हें ये भी मंजूर नहीं था तभी तो खुदा ने किस्मत से तो दूर किया ही था नजरों से भी दूर कर दिया और अधूरी रह गई हमारे प्यार की और उनसे मुलाक़ात की दासता हमेशा के लिए। #OpenPoetry