मेरे संघर्ष की कहानी कठिन दुपहरी में तृण तृण मैंने सहेज समेटा कर भावी जीवन की चिंता मैं नीड़ बना कर बैठा . कर दिया नष्ट, क्षण भर में कह कर दंभी ने कूड़ा श्रम विगलित इस तन पर तरस न कोई खाता . मेरे अंतर की व्यथा गहन कोई न देख पाता ।