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कल तक गुड़ियों से खेली, अपने स्वप्न सजाती थी,, अपन

कल तक गुड़ियों से खेली,
अपने स्वप्न सजाती थी,,
अपने सपनों को छोड़ आज,
मैं तेरे स्वप्न सजाती हूं,,
बाबुल का अंगना छोड़ सजना,
तेरा आंगन महकाती हूं,,
इंतजार में शाम ढले,
दर पे तेरे पलकें मैं बिछाती हूं,,
मुस्कराता देख तुझे,
मैं भी खुश हो जाती हूं,,
दिनभर की भूल थकान,
फिर काम में जूट जाती हूं,,
नए नए पकवान बनाकर,
तुम को रोज़ खिलाती हूं,,
तेरे मुख से तारीफ़ के दो शब्द,
सुनकर ख़ुद पर इठलाती हूं ,,
अपने सपनों को छोड़,
आज तेरे स्वप्न सजाती हूं,,

*निशा सिंह*

©Nisha Singh
        #कविता#साजन का आंगन
nishasingh4551

Nisha Singh

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कवितासाजन का आंगन

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