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मोह और माया (कविता) ये कैसी प्रीत की डोर है,कैसी ल

मोह और माया (कविता)
ये कैसी प्रीत की डोर है,कैसी लोगो की काया है
इससे चलते है दूर कहीं,यह सब तो मोह माया है
जिस धरा पर मानव ने अपना आशियाना सजाया है
उसी के नीचे खुदा ने भी एक शमशान बनाया है
यह भोग विलाश की लिप्सा तो बस आनंद्भूती की माया है
एक वेद रिचा को पढ़कर देखो इसने सबका सार छिपाया है
मानव का बस वही है जो कर्म के बदले पाया है
बाकी सब तो खफा है और पराया है
यह कौन किसका है किसी ने जान पाया है
यह तो बस एक बोध है जिसे हमने निभाया है
हमें नहीं पता अाज हमारा है या कल हमारा है 
जीवन है जब तक जिले बाकी सब तो अंधियारा है
ये कैसा बड़कपन है कैसी ये अत्याचारी है
मिट्टी में पले बढ़े हो मिट्टी है तेरी यारी है। 

ये कैसी सोच है लालच की कैसी लोगो की इच्छा है
आज ये सब तेरा है कल दूसरे का हिस्सा है
ये सांस तो एक फूल है ये तन एक क्यारी है
जब तक सिचन जारी है तब तक ही फूलवारी है
चार दिन की चांदनी है फिर सूरज का तपन है
पोशाक का कैसा गर्व यही तो सबका कफ़न है
ये कैसी प्रीत की डोर है कैसी लोगो की काया है
इससे चलते है दूर कहीं यह सब तो मोह मया है
BY RAVI PRATAP PAL मोह और माया
मोह और माया (कविता)
ये कैसी प्रीत की डोर है,कैसी लोगो की काया है
इससे चलते है दूर कहीं,यह सब तो मोह माया है
जिस धरा पर मानव ने अपना आशियाना सजाया है
उसी के नीचे खुदा ने भी एक शमशान बनाया है
यह भोग विलाश की लिप्सा तो बस आनंद्भूती की माया है
एक वेद रिचा को पढ़कर देखो इसने सबका सार छिपाया है
मानव का बस वही है जो कर्म के बदले पाया है
बाकी सब तो खफा है और पराया है
यह कौन किसका है किसी ने जान पाया है
यह तो बस एक बोध है जिसे हमने निभाया है
हमें नहीं पता अाज हमारा है या कल हमारा है 
जीवन है जब तक जिले बाकी सब तो अंधियारा है
ये कैसा बड़कपन है कैसी ये अत्याचारी है
मिट्टी में पले बढ़े हो मिट्टी है तेरी यारी है। 

ये कैसी सोच है लालच की कैसी लोगो की इच्छा है
आज ये सब तेरा है कल दूसरे का हिस्सा है
ये सांस तो एक फूल है ये तन एक क्यारी है
जब तक सिचन जारी है तब तक ही फूलवारी है
चार दिन की चांदनी है फिर सूरज का तपन है
पोशाक का कैसा गर्व यही तो सबका कफ़न है
ये कैसी प्रीत की डोर है कैसी लोगो की काया है
इससे चलते है दूर कहीं यह सब तो मोह मया है
BY RAVI PRATAP PAL मोह और माया