आज फिर हार गई अपने डर से, ये सोचके रुक गई कि क्या कहेंगे लोग। हिम्मत नहीं हुई एक भी कदम आगे बढ़ाने को, पता है पछताउँगी जरूर और फिर नहीं कर पाउँगी सुख का भोग। काश दिल में इतना साहस होता, काश मन में दृढ़ विश्वास होता, यूँ अब मन, निराशा से न घिरा होता, ये खुदा ! हर लिजिये मेरी मन की व्यथा, दे दिजिये मेरे अंदर हिम्मत अन्यथा।। आज फिर हार गई अपने डर से, ये सोचके रुक गई कि क्या कहेंगे लोग। हिम्मत नहीं हुई एक भी कदम आगे बढ़ाने को, पता है पछताउँगी जरूर और फिर नहीं कर पाउँगी सुख का भोग। काश दिल में इतना साहस होता, काश मन में दृढ़ विश्वास होता, यूँ अब मन, निराशा से न घिरा होता,