तुम यूँ ही दुत्कारती रहो मैं रोज़ तुम्हे देखा करूँगा तुम यूँ ही अंजान बने रहना मैं रोज़ तुम्हें पहचाना करूँगा तुम दीवार पे लिखे नाम मिटाना मैं रोज़ दोबारा लिखता रहूँगा तुम्हे जब नींद न आये मैं सुर कोई सजाता रहूँगा तुम देर सवेरे उठा करना मैं सूरज को मनाता रहूँगा पर एक दिन कुछ यूँ करना.... मेरे सब प्रयासों का मेहनताना दे देना ©iamkumargourav #मेरीरचना #merikalam