"प्रकृति" रात का पहरा हटा, सुबह का प्रहर खिला, दस्तक दी सूरज ने और उदय हुआ प्रकृति के नायाब ख़ज़ाने का। पांच तत्वों आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, का संगम या नि के प्रकृति। सूरज की किरणें गिरी धरती पर,और मिलन हुआ अंबर और धरा का। प्रकृति हमारी माँ है, जैसे माँ अपने बच्चों को बिना मांगे सब कुछ देती है, वैसे ही कुदरत ने हमें बिना मांगे सब कुछ दिया, मनुष्य को साँसों के लिए हवा दी,पेट भरने के लिए अनाज भी दिया, मनोरंजन के लिए बिजली भी दी,सुख साहिबी के लिए खनिज भी दिया, धरती को चीरकर प्यास बुझाने के लिए पानी भी दिया, यह हसीन वादियां फूल, पहाड़,पौधे, लीले पत्तों का रंग, पानी की झीले,और खारे पानी का समुद्र भी दिया। कुदरत ने बिना मांगे सब कुछ दिया, लेकिन उसके बदले में मनुष्य जाति ने प्रकृति को क्या दिया, पेड़ पौधे उगाने की जगह उसको काटने लगे हम, पानी का सही उपयोग करने की वजह दुरुपयोग करने लगे हम, औद्योगिक वसाहत का जहरीला पानी नदी नालों में बहाने लगे हम, चिमनी से निकलते काले रंग का धुआ और फैलाई हवा में प्रदूषण। अगर ऐसा ही चलता रहा तो समझना कि, हम इंसान पृथ्वी को विनाश के कगार पर ला के खड़ा करेंगे। इस कविता के माध्यम से मे आप सभी को, गुज़ारिश करता हु कि, पेड़ पौधे उगाए, और अमूल्य खनिज संपति का जतन कीजिए, और हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए, यह प्रकृति का अनमोल खज़ाना बचा कर रखिए। रचना क्रमांक :-5 #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता #नववर्ष2022 #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़ #kknitesh