* किस्सा कल रात का* *जश़न का माहोल था, सन्नाटे में बदल गया किसी का बनता-बनता घर उजड़ गया उस रात अंधेरे के साथ इंसना भी अँधा था अंधेरा छटा तो दिखा वहां तो रिश्तों का धंधा था दो किस्म की बरसात हुई शाखों से एक आसमान से और दूसरी मेरी आँखों से कुछ बातें सुन मेरे अंदर का कमजोर इंसान जाग आया मैं बिना बताए सब कुछ छोड़के वहां से भाग आया मेरे से ज्यादा मेरे अपनों को मेरा डर था क्यूंकि उस रात मैं सोया किसी और के घर था सब बुला रहे अपने पास, आता कैसे मजबूर था पर जाता कहां घर भी तो मेरा बहुत दूर था -शुभम सैनी kissa kal Rat ka p-2 thanks for your love and support to p-1 #love #thanks #shayri #love