छालो के निशान थे, पसीनों की महक थी । खून की नदियां बही थी, गरीबों की महफ़िल लगी थी । राजनीती की गद्दी , इनकी जिंदगी से उपर लग रही थी । सुन सान रास्तों पर अपनो की आश थी , तेज धूप में नंगे पाओ की , साथ थी और , आंखों में प्यास भुझाने की निराश थी । AC भी मुस्करा रही थी,मानो खिड़की से बाहर झांक रही थी ।। उनकी आंखों में थी एक चमक , दूसरों के घर मेंहफुज कर , नंगे पाओ लौट चले अपने घर ।। इस डगर का ना था कोई अंत , ना ही छालों पर कोई मरहम । ना ही AC का कोई साथ , ना ही गद्दी पर बैठे लोगों से कोई आश । थी तो बस आंसुओं के बीच, अपनो की याद हो गया था दर्द से प्यार ।। प्रभु भी देख रो पड़ा , पूछ बैठा खुद से , खुदा हूं मै? मैने क्या है बनाया? खुद को मान बैठा ख़ुदग़र्ज़ तू ।। दर्द के आसुओं को पीने , एक मसीहा हाथ जोड़े , उम्मीदों की सड़कों पर,अपनो के संग निकल पड़ा घर में बैठे खुद,देश के हीरो ,पर एक तमाचा जड़ गया।। हाथ फैलाए , अपनो को बाहों में भर लिया प्यार का संदेशा , उम्मीदों की किरण अपने-पन का भाव , अपनो के घर तक पहुंचा गया ।। #politics #poetry #life