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छिड़ी है बात ये सयानों में , भारी है खोट कुछ ज़ुब

छिड़ी है बात ये सयानों में , 
भारी है खोट कुछ ज़ुबानों में
बदल गया है पर अंदाज पुरानी उस के ,
 रोज तड़पने के कितने बहाने उस के
लोगों के सामने मुट्ठी न खुले धरे हैं राज़ इन मकानों में ,
अजनबी दर्द को ना देख ले छुपे हैं कांटे फूलदानों में
एक नादान न समझी कभी कु़र्बत का नशा,
 पास रहकर भी जुदाई के ज़माने उसके
लोग लेते हैं मज़ा दुर्गत का
 समय बिताओ केंद्र -दोनों में 
जिंदगी बीती चल दीवारों में
 खुली हवा है मस्त उड़ानों में 
उड़ते उड़ते कभी खबर भी पहुंच जाती है यहाँ
शहर की गलियों में मशहूर है फ़साने उस के
एक आशिक तो शायर समझना खुद को
मेरी झोली में ना दिखते ख़ज़ाने उसके 
काट के जाल भगाना चाहे  
शिकारी बैठे हैं मानव मैं
नाम पर आँच ना आए कभी
 है रीत पुरानी खा़नदानों में
आखिर जिंदगी की सड़क पर सबको अकेले जाना है
 रास ना आते हैं अब मुझे को ठिकाने उसके

©Shubhanshi Shukla
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#S_S

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