भँवरा (रुके कदम तेरे रम पम पम) 💎 रंगों सजा काठ का भँवरा, भाग्य अपना साथ लेकर, सतत घूमने का कर्म पाया, एक पैर पर खड़े होकर, हुनर लिए हाथों से निकल, सीखा जीवन का संतुलन, जब वो साध नही पाता, हिचकोले खाता है प्रतिपल, प्रेमपाश में रस-सी के पड़ कर, कुछ क्षण मिलता है सुकून, छिटककर आलिंगन से दूर, सबक पाता जीवन का क्रूर, कभी धरातल मिले नर्म, कभी पथरीले अहसास का गम, घूमता जीवन है बंजारा, सम्हलने के अवसर है कम, शक्ति निहित है जीवन में, तब तक ही चलता ये क्रम, मानव हो या भँवरा , टूटना तय है दोनों का भ्रम, बंधे हुए धूरी से जब तक, तब तक है जीवन, रुके कदम तेरे रम पम पम, सारा खेल मान लो हुआ ख़तम........ 20-2-2020 --**रामदास शब्दांकन@समर्थ RD भँवरा (रुके कदम तेरे रम पम पम)