अक्सर थोड़ी देर हुई चलता रहा अकेला दूर... दूरियों से मैं ख़ुद करीब आने में अक्सर मुझे देर हुई अंतस की गहराई में अनगिनत चेहरे छिपे अपना सच दिखाने में अक्सर मुझे देर हुई बारिशों में भीगने की मेरी तलब बढ़ती रही बूंद बन घुल जाने में अक्सर मुझे देर हुई था सफ़र अंजान सा लोग कुछ अपने मिले हमसफ़र बनाने में अक्सर मुझे देर हुई ख़्वाब अधूरे ही रहे, नींद बेवफ़ा हो गई सिरहाने सजाने में अक्सर मुझे देर हुई ©सुरेश सारस्वत अक्सर मुझे देरी हुई...